जल धारा में चलते चलते,
जल धारा में चलते चलते,
माँ गुनगुना रही है,
बेटा ओहदेदार बनेगा,
खुद को सुना रही है।
ऐ ! कंधे बैठने वाले,
मन के पन्नों पर लिख लेना ।
मां ने खवा बनाया नैया,
कल उतराई दे देना ।
लौह कलम से बज्र शिला पर,
मानस पर अंकित करना तुम |
तेरी बारी जब भी आये,
खुद को बंचित न करना तुम।
जिसने अपनी मां को माना,
कभी न उसे सताया।
बचा रहा हर बला से हर दिन,
जीवन में सुख पाया।
सतीश सृजन