जला या बुझा दो वफ़ा कर चले
विदाकर तुम्हें हम दुआ कर चले
तुम्हारे लिये रास्ता कर चले
तुम्हारी हैं ख़ुशियाँ बधाई तुम्हें
लो दामन भी अपना लुटा कर चले
दिया दिल का अपना तुम्हें दे दिया
जला या बुझा दो वफ़ा कर चले
बता दो अगर क़र्ज़ बाक़ी अभी
नज़र में जहाँ की अता कर चले
बताये बिना तो न उठते क़दम
कहीं जो गये हैं बता कर चले
ज़माना कहेगा कभी बाद में
कोई काम ऐसा बड़ा कर चले
न परवा हमें पत्थरों की है अब
सदाक़त को हम आइना कर चले
बुराई तो ‘आनन्द’ मिलनी है तय
मगर हम सभी का भला कर चले
डॉ आनन्द किशोर