जलवायु परिवर्तन में कविता : अंदाज़े बंया क्या हैं!
ये धुँआ धुँआ सा अब क्या हैं
देखो जँहा को क्या हो गया हैं!
नही किसी को फ़िक्र कल की
ये जीने का अन्दाज़े बंया क्या हैं!
होते थे जो मौसम कभी पहले,
सर्दी,गर्मी और बरसात
हो या कि बसंत बहार!
अब किसी भी मौसम में कुछ भी
ना जाने अब क्या क्या हो गया हैं!
हमने खुद,खुद के साथ क्या किया हैं
ना जाने ये जीने का अन्दाज़े बंया क्या हैं!
क्यू धोका दे रहे हम खुद के साथ
आने वाली पीढ़ी को दे रहे अभिसाप!
गर रह ही ना जाएंगे ये जंगल,पेड़ और नदी
तो फिर क्यू ना हो जायेगी प्रकति में छति!
थोड़ा सा तो अब संयम बरतो अपने करतूतों पे
धरा को हरा भरा करके बचा लो तुम सपूतो को!!
-आकिब जावेद