जलता हुआ एक सूरज. . . .
जलता हुआ एक सूरज …
सो गया थक कर
सिंधु के क्षितिज़ पर
ज़मीं के बशर के लिए
चैन-ओ-अमन की फरियाद के लिए
जलता हुआ एक सूरज ।
संचार हुआ नव जीवन का
भर दिया ख़ुदा के नूर को ज़मीं के ज़र्रे -ज़र्रे में
करता रहा भस्म स्वयं को स्वयं की अग्नि में
बशर के चैन-ओ-अमन के लिए
जलता हुआ एक सूरज ।
रो पड़ा देखकर बशर की फितरत
उसकी रहमत को समझ न सका
ग़ुरूर में खुद को ख़ुदा से बड़ा कर लिया
लगा नापने ज़मीन-ओ-आसमाँ को
अपने अहम् के पाँव से
शायद इसीलिये रोज -रोज
थक हारकर सो जाता है
बशर को समझाते -समझाते सिंधु के क्षितिज़ पर
अपने में उम्मीद के सूरज को समेटे
जलता हुआ एक सूरज
सुशील सरना/25-9-23