जलता कफ़न है
भीतर ही भीतर जलता कफ़न है
जिंदा हूँ मगर सपने दफ़्न है
फ़र्क करना नामुमकिन है
जलता क़फ़न है या मन
ज़ाहिर है जलता कफ़न
तो ना होता दफ़्न
मझधार की स्थिति है
दफ़्न और कफ़न के बीच
दरमियां इसके कोई
कर गया ग़बन
भीतर ही भीतर जलता कफ़न है
जिंदा हूँ मगर सपने दफ़्न है
बीच मझधार हूँ
डूबा ना पहुंचा किनारे
इस पार जाऊँ या उस पार
इधर जाऊं या उधर
रहूँ मझधार या किधर जाऊं
समझ आता नहीं
डूबूं या तैर जाऊँ
मझधार में हूँ किधर जाऊं
भीतर ही भीतर जलता कफ़न है
जिंदा हूँ मगर सपने दफ़्न है।।
मधुप बैरागी