जब मैं ज़िंदा था!
हम खोए हुए रहते थे
जब महबूब के ख्याल में!
एक खलिश थी फ़िराक़ में
एक नशा था विसाल में!!
हमें आया करती थीं नज़र
पूरी कायनात की रौनकें
उसकी सूरत की कशिश में
उसकी सीरत के जमाल में!!
Shekhar Chandra Mitra
हम खोए हुए रहते थे
जब महबूब के ख्याल में!
एक खलिश थी फ़िराक़ में
एक नशा था विसाल में!!
हमें आया करती थीं नज़र
पूरी कायनात की रौनकें
उसकी सूरत की कशिश में
उसकी सीरत के जमाल में!!
Shekhar Chandra Mitra