. *..जब बिजली नहीं थी( हास्य व्यंग्य)*
. ..जब बिजली नहीं थी( हास्य व्यंग्य)
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आप कल्पना करके देखिए कि जब बिजली नहीं थी तब क्या स्थिति रहती होगी ! बड़े-बड़े राजा-महाराजा सोने के सिंहासन पर राजदरबार में बैठते तो होंगे लेकिन उन्हें अपने ऊपर छत पर एक सीलिंग फैन नसीब नहीं होता था । दो-चार लोग सरकारी नौकरी पर इसी काम के लिए रखे जाते थे कि वह हाथ में बड़ा-सा पंखा ले कर राजा साहब के लिए झलते रहें। इसमें वह आनंद तो नहीं था ,जो बिजली के पंखे से आता है लेकिन फिर भी काम चलाऊ व्यवस्था कही जा सकती है।
राजाओं के लिए तो पंखा झलने वाले लोग सरकारी नौकरी पर रख दिए जाते थे लेकिन दरबारियों के बारे में आप सोचिए ! हो सकता है उनमें से चार-छह प्रमुख दरबारियों को पंखा झल के हवा पहुंचाई जाती हो अन्यथा तो बाकी राजदरबारी गर्मी के मौसम में पसीने से तरबतर ही रहते होंगे !
एयर कंडीशनर की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती । आजकल जबकि मध्यमवर्ग के पास भी घर में एक ए.सी. प्रवेश कर गया है ,राज महलों में भी तथा राज दरबारों में भी ए.सी. नसीब नहीं होते थे। घर अर्थात राज महल से निकलो तो गर्मी, रास्ते में गर्मी । रथ पर बैठकर भला कितनी हवा लग सकती है ? जो बात ए.सी. कार में है ,उसकी तुलना रथ से नहीं की जा सकती । फिर जब राज दरबार पहुंचे तो वहां भी गर्मी । घरों में अर्थात राज महलों में भी सरकारी कर्मचारी पंखा झलने के लिए नियुक्त कर दिए जाते होंगे । पैसों की तो कोई कमी थी नहीं ,लेकिन चौबीस घंटे किसी के सामने पंखा झलने वाला खड़ा रहे तो फिर प्राइवेसी नाम की कोई चीज नहीं बचती । इसलिए गर्मी तो झेलनी ही पड़ती थी ।
अब आप उस व्यवस्था के बारे में भी सोचिए जिसमें आजकल हर आदमी टोंटी खोलता है और उसमें से पानी निकलने लगता है । यह कृपा पानी की बड़ी-बड़ी टंकियों के कारण है जो नगरपालिकाओं ने शहरों में जगह-जगह बना रखी है । मोटर पंप बिजली के द्वारा चलता है । टंकी भर जाती है और फिर पाइप लाइनों के द्वारा पूरे शहर में हर आम आदमी के घर में पानी की सप्लाई हो जाती है । जब बिजली नहीं थी तब राजा-महाराजा हर समय टोंटी खोलकर अपने आप पानी प्राप्त नहीं कर सकते थे। ऐसा नहीं है कि वाशबेसिन पर गए ,टोंटी खोली और मुंह धो लिया । एक आदमी सरकारी नौकरी पर रखना पड़ता था ,जो उन्हें लोटे से जल उपलब्ध कराता था । तब जाकर राजा साहब अपना चेहरा धोते थे। साबुन लगाने के बाद उनका सेवक इस बात की प्रतीक्षा करता होगा कि राजा साहब कब पानी मांगें और मैं उन्हें चेहरा धोने के लिए पानी उपलब्ध कराऊँ। नहाने के लिए बाल्टियाँ भर कर रख दी जाती होंगी । ऐसा नहीं है कि फव्वारे के नीचे खड़े हुए और टोंटी खोल कर नहा लिए । पानी की टोंटी नाम की कोई चीज उस समय नहीं होती थी।
जो मजे आजकल आम आदमी के हैं ,वह बिजली न होने के कारण बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं को भी नसीब नहीं होते थे । आजकल हम लोग बिजली का एक बटन दबाते हैं और पल भर में चारों तरफ रोशनी हो जाती है । जब चाहा बल्व बुझा दिया ,जब चाहा उसे जला दिया । पहले राजा-महाराजाओं के महलों में भी मशाले जलाकर ही रोशनी होती थी । कर्मचारियों की फौज समझो इसी काम के लिए तैनात रहती होगी ,जिन का एकमात्र काम दिनभर मशाले तैयार करना तथा रात-भर उन मशालों को जलती रहने की व्यवस्था करना होगा । राजमहल के कमरों में लालटेन जलती थीं। बिजली के बल्व, ट्यूब लाइटें उसमें नहीं थीं। लालटेन चाहे सोने की हो या चांदी की ,लेकिन रहेगी तो लालटेन ही। वह एल.ई.डी. का बल्व तो नहीं बन जाएगी ?
बिजली आने के बाद भी एयर कंडीशनर केवल स्वप्न में ही रहता था। एक राजमहल में ए.सी. की व्यवस्था इस प्रकार की गई कि एक कमरे में बर्फ की सिल्लियाँ रख दी जाती थीं तथा उसकी ठंडी हवा को पाइपों के माध्यम से राजमहल के कुछ खास कमरों में ले जाया जाता था । इस तरह राजमहल के कुछ कमरों को एयरकंडीशंड बनाने का काम कुछ हद तक हो जाता था।
आजकल घर-घर में शयन-कक्ष के साथ लेट्रिन-बाथरूम अटैच चल रहे हैं । यह सब बिजली की सुविधा के कारण पानी की भरपूर मात्रा में उपलब्धता से ही संभव हो सका है । नई तकनीक और विज्ञान के आविष्कारों ने जिंदगी ही बदल दी !
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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