जब असहिष्णुता सर पे चोट करती है ,मंहगाईयाँ सर चढ़ के जब तांडव
जब असहिष्णुता सर पे चोट करती है ,मंहगाईयाँ सर चढ़ के जब तांडव मचाती है ,तभी कविता भी द्रवित होकर नयनों से आँसू बहाती है@परिमल
जब असहिष्णुता सर पे चोट करती है ,मंहगाईयाँ सर चढ़ के जब तांडव मचाती है ,तभी कविता भी द्रवित होकर नयनों से आँसू बहाती है@परिमल