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20 Aug 2022 · 1 min read

जबकि तुम अक्सर

मैं करता रहा सचेत तुमको,
कि तू अपने कदमों को देख,
अपने कदमों की राह देख,
और अपनी राह की मंजिल देख,
जबकि तुम अक्सर,
लगाते रहे हो कोई न कोई आरोप,
मुझ पर और मेरी दोस्ती पर।

ऐसा भी नहीं कि,
मेरी बहस नहीं हुई हो तुमसे,
और नहीं मांगी हो कभी,
किसी मुद्दे पर सलाह तुमसे,
यह भी तुमको मालूम है,
जबकि तुम अक्सर,
लगाते रहे हो कोई न कोई आरोप,
मुझ पर और मेरी दोस्ती पर।

मैंने कभी नहीं यह सोचा,
कि जमींदोज हो तुम्हारे सपनें,
जो बुने हैं तुमने भविष्य के लिए,
और बहे तुम्हारी आँखों से आँसू,
और कभी खुश भी नहीं हुआ मैं,
तुम्हारे दर्द और दुःख को देखकर,
जबकि तुम अक्सर,
लगाते रहे हो कोई न कोई आरोप,
मुझ पर और मेरी दोस्ती पर।

मैंने दिलाया है हमेशा विश्वास तुम्हें,
और वादा भी पूरा किया है अपना,
तुमको दिया है महत्त्व अपनों से ज्यादा,
और दिया है हर वो अधिकार तुमको,
ताकि तुम जी सके आजाद बनकर,
जबकि तुम अक्सर,
लगाते रहे हो कोई न कोई आरोप,
मुझ पर और मेरी दोस्ती पर।

शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847

Language: Hindi
400 Views
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