भटकाव किस वजह से
ओ हो !
ये मोहन भी है न,
अपनी आदत से बाज़ नहीं आता है.
दुनिया में,
आज कमाकर खाने में कितनी मुश्किलें हैं,
फिर भी इन्हें,
धर्म दिखाई देता है.
ये लोग तो बिल्कुल धर्मांध हो चुके है,
एक जनता है.
अति विचलित,
मनोबल,
बनाए ,
नहीं,
बन पा रहा है,
तरह तरह के धार्मिक स्थलों पर,
वे ही पुरानी पद्धति,
आदमी भूखा है.
प्यासा है,
कौन सुने,
सब उसी ओर दोड़े जा रहे है.
एक में बूढे माँ-बाप को एक गिलास पानी चाहिए,
कोई सुनता,
क्यों नहीं,
दवा,
बहुत दूर की बात.
पेंशन के पैसे से तो.
रसोई के खर्च भी,
ठीक से नहीं चलता,
धीरूभाई और भीरूभाई
दोनों ने समाज के उत्थान का बीड़ा उठा रखा है,
अतीत को कोसते हुए,
भविष्य की समां बांधने में अच्छी महारत हांसिल है.
बस उन्हें सम्प्रदायी तत्वों ने लपक लिया.
और धर्म प्रचार का प्रचम लहराने की ठान ली,
नतीजे यही होते है.
जो कोई,
कल्पना नहीं कर सकता,
एक आयोजन में झगडा हो गया,
दोनों का नाम आ गया,
घटना से पहले ही,
घर में पहले से ही चूहे कुस्ती खेलते थे.
एक नई समस्या ने घर में और दस्तक दे दिया.
बूढे माँ,
ये दिन और देखने पड गये.
जिस माँ-बाप ने पालपोस कर बडे किया.
जैसे तैसे उनकी परवरिश की.
उससे बच्चों ने कोई अनुभव नहीं लिया.
ठगी और ठगों की पहचान.
माता-पिता नहीं करवा सकते.
और यही हर माँ बाप का रोना है.