जंग लगी खिड़की
एक बंद खिड़की
अक्सर घरों में होती है
मेरे घर में भी
न जाने कब से पड़ी थी बंद
एक खिड़की ज़ंग लगी
जिसे खोलने का
मेरा कोई इरादा नहीं था
एक उम्र गुज़र गई
वह खिड़की बंद थी
बंद ही रही
फिर पता नहीं क्या हुआ
कहाँ से आ गया वह
बनकर
तेज़ झोंका हवा का,
कई दिन तक
खड़खड़ाता रहा
उस जंग लगी खिड़की के
चरमराते पट
और आखिर हो ही गया कामयाब वह
खिड़की खोलने में
शायद
मैंने भी काई कोशिश नहीं की
उसे
बंद रखने के लिए
शायद
मैं भी चाहती थी
घुटन को कम करना
पर जब मैंने
खिड़की के खुले पट से
बाहर झांका
तो
बाहर कोई नहीं था
दूर तक कोई नहीं
कोई नहीं
कोई नहीं।
मैंने प्रतीक्षा की
बहुत दिनों तक प्रतीक्षा की
और फिर मैंने थक कर
आज
वह खिड़की कर दी है फिर से बंद
अनन्त काल के लिए