जंगल …
जंगल …
जंगल के जीव
अब शहरों में चले आये हैं
स्वार्थी इंसान ने
उनके आशियाने
जलाये हैं
बदलते परिवेश में
जानवरों ने तो
अपने मतभेद
मिटा डाले हैं
अफ़सोस लेकिन
इंसान ने
अपने ही खून के रिश्ते
अपने स्वार्थ की
धुंध में
भुला डाले हैं
इंसानी रिश्तों में
बे -इंसान
जंगल बना डाले हैं
सुशील सरना