छोड़ चले आख़िर, दुनिया का कारोबार कहाँ
22 + 22 + 22 + 22 + 22 + 22 + 2
आप रहे सर्वेसर्वा, सबके सरकार यहाँ
छोड़ चले आख़िर, दुनिया का कारोबार कहाँ
मालूम तुम्हें था जाना है, इक दिन संसार से
फिर क्यों पाप किये, पुण्य कमाते सौ बार जहाँ
लूट लिया करते दानव, यूँ तो पशु जीते हैं
नेकी न किये मानव तो, है तुझे धिक्कार यहाँ
अब पुण्य कमा ले कुछ, छोड़ दे ये गोरखधन्धे
हर शख़्स अकेला है, न किसी का घरबार वहाँ
काल कभी भी आ धमके, क्यों हैराँ हो मित्रो
आगाह करूँ सिर्फ़ यही, कवि का अधिकार यहाँ