छोटी
कैसे मैल निकालूं मन से
जो मैल है तेरे दिल में
कोशिश सारी अब मेरी
नहीं रही मेरे बस में
कैसे मैल निकालूं मन से…
मन हो ना उदास कभी तेरा
हरदम यही चाहा मैने
हर काज सफल हो तेरे हमेशा
बस यही प्रार्थना की मैने
जीवन के किसी भी मोड़ पर
जब भी लगे अकेलापन
द्वार मेरे सारे सदैव ही
खुले रखे हुए हैं मैने
मन को अपने मेरी बिटिया
ना कभी उदास तुम रखना
तुच्छ बातों को सुनकर
हृदय को विकल ना करना
जीवन के लंबे सफर में
लक्ष्य अभी जरा दूर है
जीवन सफल करने को
मन को सदा मजबूत रखना
इति।
इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश
१३.१२.२०२४