छोटी मछली
छोटी मछली
मैं हूँ एक छोटी – सी मछली !
सपनों के सागर में मचली !!
सोचा सारा सागर मेरा ,
ले आजादी का सपना निकली !
बङे – बङे मगरमच्छ वहाँ थे ,
था आजादी का सपना नकली !
बङी मछली छोटी को खाए ,
इनका राग, इन्ही की डफली !
छोटी का न होता गुजारा ,
बङी खाती है काजू कतली !
“सिल्ला” इस सोच में है डूबा ,
भेद नहीं क्या असली नकली !
मैं हूँ एक छोटी सी मछली !
सपनों के सागर. में मचली !!
-विनोद सिल्ला ©