छुपाती मीडिया भी है बहुत सरकार की बातें
छुपाती मीडिया भी है बहुत सरकार की बातें
घुमाती सी हुई लगतीं हैं अब अख़बार की बातें
कभी प्रॉमिस कभी टेडी कभी तो रोज डे मनते
ज़ुबां पर आजकलसबके ही देखो प्यार की बातें
ये नेता खुद तो चलते हैं सदा विपरीत धारा के
मगर जनता से करते हैं नदी की धार की बातें
किसी को याद अपने फ़र्ज़ तो रहते नहीं देखो
यहाँ सब चीखकर करते मगर अधिकार की बातें
बुरी लगती न रिश्वत देनी हमको काम के आगे
हुई हैं आम अब कितनी ये भ्रष्टाचार की बातें
नहीं पथ छोड़ना सच का यहाँ डरकर विरोधों से
जहाँ पर फूल हैं होंगी वही पर खार की बातें
जगाना ‘अर्चना’ है ज़ोश लोगों के दिलों में अब
क़लम से हो रही हैं इसलिये ललकार की बातें
डॉ अर्चना गुप्ता