छात्रों का विरोध स्वर
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कविता
छात्रों का विरोध स्वर
विरोध स्वर जब गूंज उठे शिक्षक के सम्मान में।
हो जाए जब खुद ही छात्र अभिमान में।
कमी फिर खुद ही रह जाती है खुद के पहचान में।
शिक्षक की बातो को तल्लीन डूबकर सुनो।
जो बताए उस पर किंचित संदेह न करो।
बनाए रखिए कक्ष में शांति चिन्मयता का वातावरण।
क्योंकि शिक्षक ही है आपके भविष्य का दर्पण।
विनम्रता वाणी में हो।
हो न अहंकार की कर्कशता ।
जो तुम एक भविष्य के निर्माता के सम्मान को ही भूल जाओगे।
तो इस दुनिया के काफिले में कही खो जाओगे।
एक शिक्षक को चुनौती देने का मतलब।
खुद की अल्पज्ञता को सिद्ध करना।
गुरु दे न केवल धन हेतु शिक्षा।
करें पहले छात्र के अंदर अनुशासन, संस्कार की समीक्षा।
जड़ है वो जिसके गुरु नही।
मन का कोई अंत, शुरू नही।
हवा हवाई है सारी बाते।
बिना स्वार्थ आपका कोई हुआ नही।
गुरु के आगे न जो शीश झुकाए वो अहंकार से भरा हुआ है।
हो न जिसमे सभ्यता का पानी वो कुंआ नही है।
आरजे आनंद ज्ञान किसी को बिना गुरु हुआ नही है।
जो है विनम्र ज्ञानवान उसको अहंकार छुआ नही है।
Poet – RJ Anand Prajapati ( Co-founder Arya competition coaching classes)