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19 Aug 2024 · 1 min read

छवि हिर्दय में सोई ….

छवि हिर्दय में सोई ….

मन
तन है
या
तन मन है
ये
जान सका न कोई
भाव की गठरी
बाँध के अखियाँ
कभी हंसी
कभी रोई
प्रीत पहेली
अब तक
अनबुझ
हल निकला न कोई
बैरी हो गया
नैनों का सावन
भेद छुपा न कोई
सीप स्नेह में
लिपटा मोती
बस इतना ही चाहे
सज जाऊँ
उस तन पर मन से
जिसकी
छवि हिर्दय में सोई

सुशील सरना

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