छवि हिर्दय में सोई ….
छवि हिर्दय में सोई ….
मन
तन है
या
तन मन है
ये
जान सका न कोई
भाव की गठरी
बाँध के अखियाँ
कभी हंसी
कभी रोई
प्रीत पहेली
अब तक
अनबुझ
हल निकला न कोई
बैरी हो गया
नैनों का सावन
भेद छुपा न कोई
सीप स्नेह में
लिपटा मोती
बस इतना ही चाहे
सज जाऊँ
उस तन पर मन से
जिसकी
छवि हिर्दय में सोई
सुशील सरना