छल दंभ द्वेष
16+10
विष्णुपद छंद
दुनिया का दुनियावी ड्रामा, मुझे नहीं भाया।
छल दंभ द्वेष पाखंड दिखावा, मुझे नहीं भाया।
कहने को तो कभी- कभी मैं, भी माडर्न बना,
लेकिन दुनिया का पहनावा, मुझे नहीं भाया।
छल से नहीं रहा बेदागी, छल में डूब गया,
लेकिन छल का कभी भुलावा, मुझे नहीं भाया।
रहा अछूता नहीं प्रेम से, दुनिया देखी है,
दुनिया का पर प्रेम अनोखा,मुझे नहीं भाया।
बहकाते वो घूम रहे हैं, भोले- भालों को,
भोली जनता को बहकाना, मुझे नहीं भाया।
बेच रहे हैं माल झूठ का,नेता जनता को,
नेताओं का यही छलावा, मुझे नहीं भाया।
यूं तो लोग सुनाते महिमा, बनकर दरबारी,
लेकिन यह व्यवहार किसी का,मुझे नहीं भाया।