छंदहीनता
छंदहीनता (सरसी छंद )
छंदहीन मन काव्यहीन उर,
सूखा वृक्ष समान।।
करता निंदा भाव शून्यता,
सहता नित अपमान।
नहीं सुरीला नहीं मधुर है,
मुखड़े पर मुस्कान।
सिर्फ चाहता किसी तरह से,
मिले उसे सम्मान।
पागलपन है बुद्धि मन्द है,
सदा करे अभिमान।
असहज दिखता पागल लगता,
खुद बनता विद्वान।
लोग समझते उसको मूरख,
प्रेत भूत शैतान।
बात बात में भिड़ जाता है,
वह मरियल इंसान।
है कृतघ्नता सड़ियल मन में,
सदा अपरिमित दम्भ।
नहीं शारदा खुश हैं उससे,
नोचे वह नित खम्भ।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
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