चौपई छंद ( जयकरी / जयकारी छंद और विधाएँ
चौपइ ( जयकरी छंद ),15 मात्रिक छंद
सरल विधान – चौपइ छंद ( जयकरी छंद)
तीन चौकल + गाल या अठकल चौकल गाल , या चौकल अठकल गाल
चौपइ (जयकरी छंद )
मिले नाम के हैं उपहास |
अन्वेषण में लगा सुभास ||
हैं तस्वीरे बड़ी विचित्र |
नहीं नाम से मिलें चरित्र ||
नहीं मंथरा मिलता नाम |
पर दिखते हैं उसके काम ||
गिनती में हैं लाख करोड़ |
दिया नाम पर सबने छोड़ ||
करे मंथरा फिर परिहास |
रहे कैकयी के रनवास ||
टूटे दशरथ की सब आस |
बने राम का वन अब खास ||
नहीं कैकयी नारी नाम |
पर करती हैं उसके काम ||
दशरथ तजते रहते प्राण |
मिले देखने कई प्रमाण ||
घर-घर में पनपें षड्यंत्र |
फूँक मुहल्ला जाता मंत्र ||
सीता बैठी करे विचार –
समझ परे हैं सब व्यवहार |
नहीं विभीषण मिलता नाम |
अनुज करें पर भेदी काम ||
शूर्पणखा भी मिला न नाम |
नाक कटा जो लोटी शाम ||
देखे मामा हैं मारीच |
मचा गये जो छल से कीच ||
नहीं नाम से रखते मेल |
मारीचों सा जिनका खेल ||
सुभाष सिंघई
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चौपइ (जयकरी छंद )
प्रकट नहीं अब करते खेद |
हो जाए जब कुछ मतभेद ||
कटुत वचन से करते रार |
जैसे चलती है तलवार ||
नीचें झुकते जाते नैन |
मन भी होता है बेचैन ||
वाणी उगले जब जब आग |
विषधर जैसा निकले झाग ||
वाणी कटुता की जब धार |
करती है मन पर संघार ||
लाज शर्म भी देती छोड़ |
बैर भाव के लेती मोड़ ||
छंद महल पर अनुपम फूल |
ज्ञान नदी के रहते कूल ||
ज्ञानार्जन का करते पान |
करें परस्पर सबका मान ||
छंद सृजन करते सब मित्र |
महकाते है बनकर इत्र ||
मुखपोथी पर दें सम्मान |
ज्ञान बना है अब वरदान ||
सभी गुणी जन सृजन महान |
प्रीति परस्पर है सम्मान ||
आगत स्वागत रहता नेह |
छंद महल अब अनुपम गेह ||
एक बर्ष का है आकार |
छंद महल है अब उपहार ||
सीखें मिलकर हम सब यार |
त्रुटियों का करके उपचार ||
सुभाष सिंघई
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चौपइ छंद ( जयकरी छंद)
तीन चौकल + गाल या 8- 7
मुक्तक
संत सदा देता है ज्ञान |
रखे न मन में कोई मान |
मायाचारी से रह दूर ~
होता है वह सरल सुजान |
करता जन मानस से प्यार |
संत सदा करते उपकार |
बिच्छू भी जब मारे डंक –
हँसकर करते निज उपचार |
संत सदा होते अनमोल |
नहीं हृदय में रखते झोल |
पास बैठकर देखो यार ~
मिले शहद से मीठे बोल |
सुभाष सिंघई
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चौपइ छंद ( जयकरी छंद)
तीन चौकल + गाल या 8- 7
गीतिका
स्वर – आज , पदांत उदास
साथी मौसम आज उदास |
देखें होते काज उदास |
जहर हवा में घुलती देख ,
लगती है आबाज उदास |
गोरी कर बैठी शृंगार ,
प्रीतम बिन है नाज उदास |
नारी लगती है लाचार ,
नहीं सुरक्षा लाज उदास |
चोर घूमते चारों ओर ,
कहाँ छिपायें राज उदास |
कहाँ सवारी करे सुभाष ,
पाकर नीर जहाज उदास |
सुभाष सिंघई
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चौपइ छंद ( जयकरी छंद) गीत
तीन चौकल + गाल या 8- 7
अजब गजब लगते दरबार , कागा करते है उपचार |
जहर हवा में अपरम्पार , साँस खींचना है दुश्वार ||
गिला नहीं अब करना हेर , आज समय का लगता फेर |
पकवानो में कच्चे बेर, मिलते रहते देर सवेर |
सच्चा कहना झूठ निहार , बगुला पहने कंठीहार |
जहर हवा में अपरम्पार , साँस खींचना है दुश्वार ||
जो पैदा है अब हालात , कौन सुनेगा सच्ची बात |
सत्य यहाँ अब खाता मात , मिलती रहती उसको घात ||
तम का घेरा बोता खार , नागफनी फैली हर द्वार |
जहर हवा में अपरम्पार , साँस खींचना है दुश्वार ||
जगह- जगह पर दिखती झोल , मिले पोल में हमको पोल |
खट्टा खाते मीठे बोल , झूठ यहाँ पर है अनमोल ||
छिपी छिपकली है दीवार , जहाँ राम का चित्र शुमार |
जहर हवा में अपरम्पार , साँस खींचना है दुश्वार ||
सुभाष सिंघई
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चौपई(जयकरी छंद )
कैसे बढ़ती उनकी शान | खुद जो गाते अपना गान ||
समझें दूजों को नादान | पर चाहें खुद का सम्मान ||
सबसे कहते हवा प्रचंड | पर यह होता वेग घमंड ||
रखता अपने मन में रार | खाता रहता खुद ही खार ||
बनता मानव खुद ही भूप | सागर छोड़े खोजे कूप ||
नहीं आइना, देखे रूप | अंधा बनता, पाकर धूप ||
बढ़ता कटता है नाखून | सच्चा होता है कानून ||
करते लागू जो फानून | मर्यादा का होता खून ||
(फानून =मनमर्जी कानून ){देशज शब्द है )
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#चौपई/जयकारी/जयकरी छंद. #मुक्तक
यह छंद के चार चरण का मुत्तक है
दो युग्म जोड़कर भी मुक्तक सृजन हो सकता है ,जिसका उदाहरण आगे लिखा है
बढ़ता कटता है नाखून |
सच्चा होता है कानून |
करते लागू जो भी रार –
मर्यादा का होता खून |
कैसे बढ़ती उनकी शान |
खुद जो गाते अपना गान |
उल्टी – सीधी चलते चाल ~
समझें दूजों को नादान |
सबसे कहते हवा प्रचंड |
पर यह होता वेग घमंड |
रखे दुश्मनी मन में ठान ~
खाता रहता खुद ही दंड |
बनता मानव खुद ही भूप |
सागर छोड़े खोजे कूप |
नहीं करे वह रस का पान ~
अंधा बनता पाकर धूप |
लिखता मुक्तक यहाँ सुभाष |
छंद चौपई रखे प्रकाश |
पर सच मानो मैं अंजान ~
नहीं जानता कुछ भी खास |
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दो युग्म जोड़कर भी मुक्तक सृजन हो सकता है
कैसे बढ़ती उनकी शान , खुद जो गाते , अपना गान |
समझें दूजों को नादान , पर चाहें खुद का सम्मान |
सबसे कहते हवा प्रचंड , पर यह होता वेग. घमंड ~
टूटे पत्थर -सा हो खंड , रखे दुश्मनी मन में ठान |
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#चौपई/जयकारी/जयकरी छंद. #गीतिका
इस तरह भी चौपई गीतिका लिखी जा सकती है , पर पन्द्रह मात्रा पर गाल (21) से यति करके तीस मात्रा की
अपदांत गीतिका
कैसे उनकी जाने शान , खुद जो गाते अपना गान |
समझें दूजों को नादान , पर चाहें खुद का सम्मान ||
सबसे कहते हवा प्रचंड , पर यह होता , वेग घमंड ,
टूटे पत्थर सा हो खंड , रखे दुश्मनी मन में ठान |
बनता मानव खुद ही भूप , सागर छोड़े खोजे कूप ,
अंधा बनता पाकर धूप , नहीं करे वह रस का पान |
बढ़ता कटता है नाखून , सच्चा होता है कानून ,
करते लागू जो फानून , मर्यादा का है नुकसान ||
लिखे गीतिका यहाँ सुभाष , छंद चौपई रहें प्रकाश ,
कदम उठाता कुछ है खास , पर सच मानो वह अंजान |
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चौपई गीतिका
स्वर –आता , पदांत – अपना गान
नाते
उसकी कैसी माने शान , खुद जो गाता अपना गान |
गीत दूसरे बेतुक तान , लेकर आता अपना गान ||
सबसे कहते हवा प्रचंड , पर है करते सदा घमंड ,
खाता रहता खुद ही खार , रखे दुश्मनी , मन में ठान |
देखा मानव, का है ज्ञान , सागर छोड़े , खोजे कूप ,
अंधा बनता, पाकर साथ , नहीं करे वह , रस का पान |
बढ़ती कटती , देखी डाल , सच्चा होता , यहाँ उसूल ,
करते लागू , अपना जोर , मर्यादा का , है नुकसान ||
लिखे गीतिका , यहाँ सुभाष , चौपई छंद , रखे प्रकाश ,
करता साहस , सबके बीच , पर सच मानो ,है अंजान |
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चौपई छंद गीत
कैसे बढ़ती , उनकी शान , खुद जो गाते , अपना गान | मुखड़ा
समझें दूजों , को नादान , पर चाहें खुद का सम्मान || टेक
सबसे कहते हवा प्रचंड , पर यह होता , वेग घमंड |अंतरा
रखता अपने , मन में रार , खाता रहता , खुद ही खार ||
करता सबसे, जमकर बैर, और मचाता , है तूफान | पूरक
समझें दूजों , ~~~~~~~~~~~~~`~~~~~~~~|| टेक
बनता मानव, खुद ही भूप ,सागर छोड़े , खोजे कूप |अंतरा
नहीं आइना, देखे रूप , अंधा बनता, पाकर धूप ||
पागल बनता , जग में घूम , करे सभी से , रारा ठान | पूरक
समझें दूजों ~~~`~~~~~~~~~~~~~~~~~~~||टेक
बढ़ता कटता , है नाखून , सच्चा होता , है कानून |अंतरा
करते लागू , जो फानून , मर्यादा का , होता खून ||
अब कवि सुभाष , करे आभाष ,उन्हें प्रेम का , कैसा दान |पूरक
समझें दूजों ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~||टेक