चोरी जिसका काव्य हो , जागें उसके भाग ।
चोरी जिसका काव्य हो , जागें उसके भाग ।
उस रचना को फिर मिले, सबका ही अनुराग ।
सबका ही अनुराग, कीर्ति फिर उसको मिलती ।
गंध हीन हर बात,पुष्प के सम फिर खिलती ।
वैसे तो यह बात , लगे है बड़ी छिछोरी ।
चमके उसके भाग , हुई जो रचना चोरी ।
सुशील सरना / 6-10-24