*चैतन्य एक आंतरिक ऊर्जा*
शीर्षक : आंतरिक ऊर्जा
लेखक : डॉ अरुण कुमार शास्त्री – पूर्व निदेशक – आयुष – दिल्ली
एक प्रश्न हम से है जो जुड़ा,
इस जगत में जड़ या चैतन्य कौन है बड़ा ?
मैंने देखा जड़ का विस्तार सम्पूर्ण जगत में ।
चैतन्य से होता है बृहद और कई गुणा ।
जड़ की क्षमता के आगे चैतन्य बौना पड़ जाता है ।
मेरा इस जीवन का अनुभव, यही बतलाता है ।
चैतन्य का विकास, सुनिश्चित सीमाओं से है बँधा ।
और जड़ तो जड़ है जैसा था वैसा ही रहता पड़ा ।
न श्वास , न गति , न प्रगति , न ही कोई मति ।
अरे ये तो पत्थर जैसा होता है, इसकी क्या सहमति ।
लेकिन शक्ति और सामर्थ्य में इसके आगे ।
हमेशा हमारा सर्वस्व चैतन्य बौना पड़ जाता है ।
एक प्रश्न हम से है जो जुड़ा,
इस जगत में जड़ या चैतन्य कौन है बड़ा ?
माना की मेरी बुद्धि तृण के समान है ।
मात्र जितना ज्ञान है वही मेरा संसार है ।
जो देखा, पाया, सीखा, वो तो सिर्फ बूँद , समान है ।
और जड़-चेतन का प्रश्न तो बहुत ही विशाल है ।
फिर भी इस पर लिख रहा, ये पटल का विधान है ।
एक प्रश्न हम से है जो जुड़ा,
इस जगत में जड़ या चैतन्य कौन है बड़ा ?