चुम्बन के वादे
“वेलेंटाइन डे” और “किस डे” रूपी वासना के
“साप्ताहिक उत्सव” के विरुद्ध “एक रचना”
वो गुलाबी शबाबी संग चुम्बन के वादे,
है केवल आशनाई इसे प्रीत कहते नहीं।
आशिकी के लिए जो चुने तुमने दिवस,
दिन तारीखों में गिन गिन प्रेम करते नहीं।।
वो गुलाबी शबाबी संग चुम्बन के वादे,
है केवल आशनाई इसे प्रीत कहते नहीं…..
प्रेम वो है सखा जो दिखते भगवान में,
प्रेम वो है जो निहारती माता संतान में।
वासना की महक को ढूंढते भँवरों से तुम,
सात दिन को जन्मों की रीत कहते नहीं।।
वो गुलाबी शबाबी संग चुम्बन के वादे,
है केवल आशनाई इसे प्रीत कहते नहीं…..
प्रीत से हो गयी धानी चुनर श्याम की,
प्रीत में डोली वन बन सिया राम की।
प्रीत के बस ही हारे भक्त सबरी से प्रभु,
क्यों प्रेम में जीत को जीत कहते नहीं।।
वो गुलाबी शबाबी संग चुम्बन के वादे,
है केवल आशनाई इसे प्रीत कहते नहीं…..
प्रेम में मीरा पी विष को भी अमृत करे,
प्रेम में सदा रंग रूप को रख कर के परे।
उस निहंग शिव की काया को भोला बना,
बिन प्रेम अघोरी सम मनमीत कहते नहीं।।
वो गुलाबी शबाबी संग चुम्बन के वादे,
है केवल आशनाई इसे प्रीत कहते नहीं…..
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १३/०२/२०२१ )