चुनावी उत्सव
रणधीर आज पहली बार विधायक चुने गए,
उसे जितने के लिए तीस साल मे यह सातवां चुनाव लडना पडा,
वह हर बार निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में चुनाव लगते रहा, लोगों से सम्पर्क जारी यखे, वोटे तो हर चुनाव में बढ़ती रही,
लेकिन जीत के लिए काफी नहीं थी,
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उसे इस बार पार्टी से टिकट मिल गई.
हालांकि उसकी विचारधारा, उस पार्टी से कतई मेल नहीं खाती थी,
फिर भी वह पार्टी की वोट लेकर, कुछ अपने प्रयासों से सफल हो गया,
फिर उसने लोगों पर तंज करने शुरू कर दिए.
आपने वोट मुझे नहीं, वोट पार्टी को दी है.
वरन् मैं तो पहले ही जीत जाता.
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चुनावी उत्सव तो हर पांच वर्ष में या मध्यावधि पर आ जाते है, डोर लोगों के हाथ वोटों में रहती है.
वही हुआ. पार्टी ने टिकट काट दी, और सदस्यता रद्द कर दी.
फिर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े.
और रणधीर हार गया.
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चुनावी उत्सव में उम्मीदवार वा पार्टियों के घोषणा-पत्र होते है, एक विधायक को इस उत्सव के सभी आंकड़े बिठाने पडते है. वह साम दाम दंड भेद से जनता को लुभाने में शरीफ होता है.
उसे अपने क्षेत्र के चहोतों को खोजना होता है.
जितने गांव शहर उससे ज्यादा बूथ.
मजबूत करने होते है.
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इस चुनावी उत्सव में जनता राजनेता के काम को खुद अपने हाथों में ले लेती है.
भले जनता सीधे राजनेता को कतई न जानता हो.
रामू श्यामू कालू घनश्याम परवेश अब्दुल हीरा यशपाल सभी अपने अपने उम्मीदवार की जीत में जी जान से लड़ते है,
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यह समय किसी उत्सव से कम नहीं.
बसरते उम्मीदवार और समर्थक जनता अपना श्रेष्ठ देते रहे. वोट के लिए धर्म जाति तुष्टिकरण, एकीकरण के लोक लुभावने कर्म निंदनीय है.
इनसे ऊपर उठकर इस उत्सव को मनाये.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस