चिराग और रोशनी
क्या जुल्मत पड़ी तेरे जाने के बाद ,
रोशनी के लिए हमें अपना चिराग ए दिल जलाना पड़ा
बड़ गए है जिंदगानी में अंधेरेे से बहुत ,
अब तो जला दो एक शम्मा मुहोबत की दोस्तों !
रोशनी का पीछा करते अंधेरे आए हाथ ,
अब इस तकदीर से क्या उम्मीद कर सकते हैं हम ।
रोशनी भी वही होती है जहां आप होते है ,
वरना ये कमनसीबी रही हमारी ,
अंधेरों के सिवा कुछ हासिल नहीं ।