चाहत
कविता
परिभाषा चाहत की
अपरिभाषत ही मानिए
अलग अलग भाव विचार
अलग सबकी चाहत
एक रूप होती नहीं
खूब विचार कीजिए
कोई चाहता धन दौलत
कहीं रूप रंग उलझन
कोई चाहता मान बडाई
अधिकतम चाहिए
कुछ स्वाभाविक संतुष्ट
कुछ चंचल मन के गुलाम
जो मिलता होता है कम
पूर्णता में चाहिए
एक चाहत पूर्ण जब
दूसरी मन में तैयार तब
चाहत ही चाहत में जीते
चाहत अधूरी मानिए
चाहत की सीमा नहीं
परिभाषा भी पूर्ण नहीं
अपने अपने अंदाजे को
परिभाषा मत मानिए
लिखने की तो बात अलग
लिखेंगे सब अलग अलग
कवियों के भाव विचार
पढ कर स्वयं जानिए
चाहत में है लोभ मोह
सुख सुविधा लगा रोग
चाहत में करते हैं पाप
धर्म भी पहचानिए
जिसकी चाहत में सुकर्म
उसने समझा जीवन मर्म
चाहत मे यदि मानवता
धन्य जन्म जानिए।
राजेश कौरव सुमित्र