चांद की कांगड़ी बनकर तुम
न दिन में
मिले
सूरज की तपिश
न काली स्याह रातों में
सपनों में भी कहीं मिले
तेरा साथ तो
समझ नहीं आ रहा
मन परेशान है
रूह बेचैन कि
यह तन्हाई भरी
सर्द रातें तेरे बिना
कैसे कटेंगी
उतर आओ मेरे दिल के
अहाते में
चांद की कांगड़ी बनकर तुम
और सुलगा दो
मेरे जिस्म के
लिबास में
अपनी मोहब्बत के गर्म
अंगारों की गर्माहट कि
मैं कहीं से तो
इन सर्द बहती ठंडी हवाओं के थपेड़ों से
थोड़ी सी राहत पाऊं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001