चाँद
सुनो चाँद! तुम हमेशा भागदौड क्यो करते रहते हो? कुछ पल रुको तो सही, कुछ बातें करनी है| तुम इतने उजङे हुये और सुनसान से क्यो हो ? कोई पेड़- पौधा नहीं, कोई जीव-जन्तु नहीं| कैसे रह लेते हो इनके बिना? इनके बिना तुमको तुम्हारा जीवन नीरस नहीं लगता? तुम्हारा ऐसा हाल किसने किया? क्या तुम्हारे यहां भी मानव जैसी कोई रचना थी जिसने प्रकृति के साथ सामंजस्य नहीं बनाया और अपने भौतिक सुख सुविधा और किसी भी कीमत पर विकास के लिये पेड़ पौधों और जीव जन्तुओं का विनाश किया, परिणामस्वरूप खुद भी नष्ट हो गये?