चाँद
शांत टकटकी लगाये देखता है
शायद मेरे हालात पर हँसता है
ऐ मेरी खिडकी के चाँद सुनो
पल भर ठहरो अपना कुछ हाल
सुनाता हूं
देखो मेरे इन ख्वाबो को जिन्हें
मै पल पल समेट रहा हु
खिड़की पर बैठे परिकल्पनाओं
की चादर लपेट रहा हु
देखो मेरे सपनो को जिनके लिए
मैं निर्जल नयन बहा रहा हु
अपने मन मे उम्मीदों का
एक दीपक जला रहा हूँ
सुनो मेरे तुम ह्रदय की धड़कन
जो अपनी निरन्तरता छोड़ रही है
मेरी ही चिंताओं मे
ये दम तोड़ रही हूँ
कहा है वो ख़ुशी जिसके
इंतजार मैं पलके बिछा रहा हूँ
हर पल ढलती उम्र से
कुछ वक्त चुरा रहा हु
देखो मेरे इन अंशुओ को जिनको
मै बारिश मे छिपा रहा हूँ
तुम ढूंढ के लाओ मेरे चाँद को मैं
तुमको उसकी मुखाकृति बता रहा हूँ