चाँद-सा हुस्न
मापनी- 122 122 122 121
आधार छंद- सगुण
दिखा चाँद-सा हुस्न ऐसा कमाल।
मचा है शहर में गजब का धमाल।
कहो कौन किसका उठा है नकाब,
सभी कर रहे थे यही बस सवाल।
नहीं है जमीं पर न है आसमान,
दिखा हुस्न ऐसा गजब बेमिसाल।
उतर चाँद आया गगन से जमीन,
लिए हाथ में खूबसूरत रुमाल।
कहो किस तरह हम करें एतबार,
सुना इश्क़ का रंग है सुर्ख़ लाल।
नजर में भरे जाम कितने हजार,
खुले बाल में लग रही हो जमाल।
मिला प्रेम तुम से बहुत बेहिसाब,
किसी और का अब नहीं है खयाल।
बने इश्क़ के हम मुसाफ़िर जनाब,
नहीं है किसी बात का अब मलाल।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली