चाँद मेरा नहीं…
चाँद मेरा नहीं, न कभी होना है
संग तारिकाओं के उसे रहना है।
मोल बिकता नहीं बाजार में वो
है अनमोल, न कोई खिलोना है।
शीत करों से अपने छू रहा मुझे
मन-विभ्रम है या जादूटोना है।
तक रहा मुझे वो टकटकी लगाए
खुली आँखों का सपन सलोना है।
रातभर जगाए मन मेरा भरमाए
रोज तड़के बिछोह फिर होना है।
रूप रुपहला चाँदी- सा उसका
फबता माथे पर नज़र डिठोना है।
करूँ लाख जतन छू न पाऊँ उसे
वो क्षितिज पर बजूद मेरा बौना है।
आया बनठन सोलह कलाएँ धारे
लिए अंक में मृदुल मृग छोना है।
रजत रश्मियों से बुना ताना-बाना
हंस-सी श्वेत ओढ़नी व बिछोना है।
नींद खोऊँ या साथ हसीन उसका
यकीकन आज कुछ तो खोना है।
रात है पूनम की, देखूँ उसे जी भर
बाद चाँदनी के गम ही तो ढोना है।
-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)