चाँद बहुत अच्छा है तू!
क्या कमी है क्या है खूबी,
जानता क्या कौन है।
देखता करतूत सबकी,
फिर भी रहता मौन है।
हर घटना को देखता है
चलते चलते सारी रात।
अपने में छुपा के रखता,
किसी की न कहता बात।
हो गमी, उत्सव कहीं या,
कान्हा का महारास हो।
समदर्शी का भाव सदैव,
आम पल या खास हो।
किसी का तू चंदा मामा,
किसी का है नामा बर।
खग चकोरी का तू साजन,
रखता भाव विभोर कर।
देता शीतल चांदनी और,
दिल का कितना सच्चा है तू।
कैसे करूं तारीफ तेरी,
चाँद बहुत अच्छा है तू।
पर मुझे एक बात कहना,
गौतम नारी से जुड़ी।
इंद्र छल में क्यों गया तू,
गर्ज तुझको क्या पड़ी।
पहले से शापित बना था,
गनपत के अभिशाप से।
शिव का सेवक होकर भी,
क्यों न बचा इस पाप से।
सूर्य से आभा है पाता,
नाता रवि परिवार से।
किया धूमिल सबकी छवि को,
एक धृणित व्यवहार ।
चाँद तू मुझे अच्छा लगता,
सो तुझे इतना कहा।
तू भी सेवक उस प्रभु का,
मैं भी हरि सेवक रहा।
पग पग पर अपराध कितने
मुझसे तो होते अमल।
लेकिन तू तो देव जैसा,
ज्योत्स्ना तेरी विमल।
अब न करना चूक कोई,
राम करते सब भले।
रात बीती तात पूरी,
तुम चलो हम भी चले।
सतीश सृजन लखनऊ।