चाँद के माथे पे शायद …….
चाँद के माथे पे शायद …….
चाँद के माथे पे शायद
दुनिया के लिए सिर्फ दाग है
पर दाग वाला चाँद ही
आसमां का ताज़ है
करता वो अपनी चांदनी से
मोहब्बतों की बरसात है
जो धड़कनों के दे रवानी
इक वही तो साज़ है
हों खुली या बंद पलकें
ये हर पलक का ख़्वाब है
अब्र से सावन में करता
नूर की बरसात है
हर खुशी के लम्हों में
होते हैं पल कुछ ऐसे भी
बीती शब के जिसमें छुपे
दर्दीली नमी के दाग हैं
है दर्द का वो दाग शायद
जो चाँद के माथे पे है
सच म मोहब्बत का दर्द ये
कितना हसीं अहसास है,कितना हसीं अहसास है ….
सुशील सरना