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29 Jun 2022 · 1 min read

चले आओ तुम्हारी ही कमी है।

गज़ल

1222…….1222…….122
चले आओ तुम्हारी ही कमी है।
हमारे दिल में बस ये बेकली है।

लगे दुनियां मुझे ये जैसे बंजर,
बची आंखों में ही थोड़ी नमी है।

तुम्हें मैं मांग लूं जो टूटे तारा,
मेरी आंखें सितारों पर जमी है।

तुम्हें देखूं या रोटी दाल को अब,
कहां आती है अब गायब हंसी है।

तुम्हारे सामने हिम्मत नहीं थी,
वो महगाई मेरे पीछे पड़ी है।

बड़ी अब हो गई बेटी तुम्हारी,
वो पढ़ लिख कर पकौड़े बेचती है।

तुम्हारी आसरा छोड़ा न ‘प्रेमी’
ये चलती सांस तुम पर ही टिकी है।

……..✍️ प्रेमी

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