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30 May 2021 · 1 min read

चली रे चली मेरी पतंग चली…

चली रे चली मेरी पतंग चली
होके डोर पे सवार मेरी पतंग चली
इठलाती लहराती मेरी पतंग चली
कभी जमी तो कभी आसमां छूती
देखों पक्षियों से कैसे बाते करती
ऐसा लगता है कि वो भी उसके सगे बने है
मूक भाषा में कुछ कहते है
दोनों एक दूजे का समझा करते है
पतंगबाज भी डोर से पतंग उठाते-गिराते है
अपनी उंगलियों पर उसको नचाते है
कभी काटते तो कभी कटाते है
देख-देख पतंग नभ में, मंद-मंद मुस्काते है
चली रे चली रे मेरी पतंग चली
होके डोर पे सवार मेरी पतंग चली …
दूर गगन में टिमटिमाती चली
‘अंजुम’ कल्पना का सहारा ले
जीवन के पेच लड़ाता है
कभी गिरता तो कभी उठता है
जीवन के पथ पर देखों कितनी दूर जाता है
चली रे चली रे मेरी पतंग चली
इठलाती लहराती मेरी पतंग चली
नाम-मनमोहन लाल गुप्ता ‘अंजुम’
मोबाइल नंबर-9927140483

Language: Hindi
2 Likes · 575 Views
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