चली जाऊं जब मैं इस जहां से…..
चली जाऊँ जब मैं
इस जहां से
मिट्टी में दबा देना
मेरी कविताएंँ
मेरी कहानियांँ
मेरे छंद मेरी ग़ज़ल
जो भी लिखा
उन सबको
मिला देना मिट्टी में ।
कभी किसी रोज़
पन्नें मिट्टी से दोस्ती कर
रूपांतरण कर लेंगे
और
उस मिट्टी के
अनुकूल
बना लेंगे खुद को।
सारे शब्द
घुल जाएँगे उस मिट्टी में
तुम बस पानी देते रहना
देखना
उग आएँगे उनमें
नन्हें पौधे जिनमें लगेगी
शब्द-कलियांँ
और फिर एक दिन
जब वो फूल बन जाएँगी
तब शब्दों की महक से
खूशबूदार हो जाएगी तुम्हारी बगिया।
कालांतर में
जब नन्हें पौधे बन जाएँगे वृहद वृक्ष
उनमें लगने लगेंगे फल
गर कोई
खाएगा तोड़ उन्हें
तब मेरे शब्द
उन फलों के साथ ही
प्रविष्ट हो जाएँगे उस जुबां में
वही शब्द वापस
जुबां से निकलेंगे उनकी
कभी परिंदे
अपनी चौंच से
उनका रसपान कर
नेह गीत गाएँगे
तब उन स्वरों में मेरे शब्द स्वयं गुनगुनाएँगे
और तत्क्षण मैं
फिर से जी जाऊँगी
एक बार……उन शब्दों में, उन गीतों में।
वे शब्द जो मेरे हृदय अणु हैं….
वे शब्द जो मेरे जीवन अनुभव है…
वे शब्द जिनमें बसती है मेरी प्रीति अणिमा……
वही मेरे कर्म के रत्न हैं…..
क्या तुम मेरा ये काम करोगे…
क्या मेरी इस पूँजी में अपने श्रम का निवेश करोगे?..
क्या मेरी इस विरासत को विराट बनाने में
करोगे मदद?…
क्या मेरा सपना सच कर पाओगे?..
क्या मेरे अहसास को महसूस कर
मेरा काम करोगे?..
क्योंकि
जब शब्द अक्षुण्ण होंगे
तब जिंदा रह सकूँगी मैं
हमेशा
अपने इन शब्दों में…..
बोलो!….
सम्हाल लोगे ना तुम!!…
चली जाऊँ जब इस जहां से……
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर (राज.)