चलन मेरे देश का
कैसा है यह चलन ,
मेरे भारत देश का।
दोषी की जमानत पर,
माहोल बनता जश्न का।
आतिशबाजी हर तरफ,
जयकार ढ़ोल मृदंग का।
लगता विजयश्री पाई,
मान घटाया दुश्मन का।
न्याय के समर्थन में साथ,
गिने चुने लोगों का।
अधिकतर कामना करते,
कानून के तोड़ का।
यदि कोई नेता, अभिनेता,
दोषी ठहराया जाता।
पक्षपात पूर्ण निर्णय का,
दोष न्यायधीश को जाता।
समर्थकों की भीड़ बन रही,
प्रसिद्धि पाने का तरीका।
न्याय तंत्र हो रहा अपमानित,
जन-बल काअजब सलीका।
अपनों से अपमानित,
प्रजातंत्र की चादर।
भीड़ तंत्र के पास गया,
शासन का सौदागर।
जिस का होता विरोध,
बदलती वहीं व्यवस्था।
राष्ट्र हित हुआ नदारत,
कुर्सी से जुड़ी आस्था।
राजेश कुमार कौरव”सुमित्र”