चलती वादों की आँधियाँ देखी
चलती यादों की आँधियाँ देखीं
गिरती इस दिल पे बिजलियाँ देखीं
इस मुहब्बत में हमने तो कितनी
खिलती वादों की बाजियाँ देखीं
सिसकियाँ रिश्तों की सुनी हमने
ऊँची जितनी हवेलियाँ देखीं
ताज़गी साँस में बसे कैसे
घर में बस बंद खिड़कियाँ देखीं
आहटें सूँघती हुई हमने
दर पे लटकी उदासियाँ देखीं
हमने ईमान की भी पग पग पर
‘अर्चना’ लगती बोलियाँ देखीं
30-08-2017
डॉ अर्चना गुप्ता