चर्चा अब उस का एक भी लब पर नहीं रहा।
चर्चा अब उस का एक भी लब पर नहीं रहा।
सुनता हूँ सुर्ख़ियों में सितमगर नहीं रहा।
दौलत मिली तो भूल गया दोस्तो को वो।
उङने लगा हवा में ज़मीं पर नहीं रहा।
हैवानियत की ओढ़े हुए हैं रिदाएँ लोग।
इंसानियत का कोई भी पैकर नहीं रहा।
जज़्बा मुहब्बतों का वफ़ा का ख़ुलूस का।
अब तो किसी के दिल के भी अंदर नहीं रहा।
अब तिश्नालब दिखाएँ किसे अपने ख़ुश्क़ होंट।
ईसार का करम का समन्दर नहीं रहा।
दुनिया से ख़ाली हाथ गया वो भी एक दिन।
तू क्या रहेगा जब कि सिकन्दर नहीं रहा।
अब भी मैं फ़स्ल बोता हूँ अश्आर की ‘क़मर’।
किस ने कहा कि अब मैं सुख़नवर नहीं रहा।
जावेद क़मर फ़िरोज़ाबादी