चतु-रंग झंडे में है
चतु-रंग झंडे में है तीन जिसमें अहम
चौथा रंग रहा गौण इनको बड़ा अहम
विकास-चक्र चलता वह नील- रंग है
रंगों-रंग पिसता-घिसता नील है अहम।।
वह अशोक-चक्र सबका का करता घमण्ड चूर
जीत लिए हों चाहे जिसने रण जीवन -भर-पूर
रग-रग में जिसके शौर्य बसा ऐसा अगर-अनूप
आज गौण क्यों है वह शौर्यचक्र-रंग जीवन-पूर।।
चक्र-बिना गति-प्रगति असम्भव
चक्र-बिना तक्र बनना असम्भव
फिर कैसे निकलेगा घृत- अमृत
है चक्र-बिना मक्खन असम्भव।।
चतुर्थ छोड़ तीनों से नहीं सम्पूर्ण काज
ना पहले था, ना अब है,ना होगा काज
तीन पहियों की गाड़ी चलती जैसे-तैसे
चार पहियों आगे देखो कैसे आती लाज।।
रंग सभी मिलेंगे तभी तो रंग जमेगा
संग सभी रहेंगे तभी राज है जमेगा
एक- दूजे -बिन काज कैसे सरेगा रे
दूध दही बनेगा संग जामण जमेगा।।
शरीर के सभी अंग-सम है समाज
एक चोट लगे पीड़ शरीर- समाज
ना सरे काज एक-दूजे-बिन हमार
सभी चर्म के भांडे मानव- समाज।।
हिन्दू,मुस्लिम,सिख, ईसाई
कहते नहीं अपने को भाई
कहो कैसे आई ये नोबत
कहाँ गई वो मुहब्बत भाई।।
ला दो वो दिन जिसमें सत् का राज हो
सब-सिर फिर वो मुहब्बत का ताज हो
चतुर्वर्ण,चतुरधर्म,चतुररंग हो सब एक
राज हो राज हो केवल सत् का राज हो।।
मधुप बैरागी