चंचल – मन पाता कहाँ , परमब्रह्म का बोध (कुंडलिया)
चंचल – मन पाता कहाँ , परमब्रह्म का बोध (कुंडलिया)
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चंचल – मन पाता कहाँ , परमब्रह्म का बोध
ठहरे जिसके दो कदम , करता वह ही शोध
करता वह ही शोध , गहन भीतर तक जाता
महासिंधु से खोज , कीमती मोती लाता
कहते रवि कविराय ,अमोलक पावन प्रभु-धन
लेता जन्म अनेक , नहीं पाता चंचल – मन
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451