*घूॅंघट में द्विगुणित हुआ, नारी का मधु रूप (कुंडलिया)*
घूॅंघट में द्विगुणित हुआ, नारी का मधु रूप (कुंडलिया)
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घूॅंघट में द्विगुणित हुआ, नारी का मधु रूप
जैसे छनकर आ रही, पेड़ों से हो धूप
पेड़ों से हो धूप, दुपहरी मद्धिम छाती
तनिक लाज-संकोच, शर्म के चित्र बनाती
कहते रवि कविराय, अधखुले होते ज्यों पट
झॉंक रहा सौंदर्य, अलौकिक होता घूॅंघट
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451