*घुटन-सी लग रही है अब, हवा ताजी बहाऍंगे (हिंदी गजल/ गीतिका)*
घुटन-सी लग रही है अब, हवा ताजी बहाऍंगे (हिंदी गजल/ गीतिका)
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1
घुटन-सी लग रही है अब, हवा ताजी बहाऍंगे
कहीं से ढूॅंढ़कर मौसम, नया इस बार लाऍंगे
2
घरों में आग अब लगने लगी है जिन चिरागों से
जलाया था हम्हीं ने अब, उन्हें हम ही बुझाएँगे
3
डरे-सहमें हैं ये सब लोग, जो चुपचाप बैठे हैं
ये मन की बात अपनी, वक्त आने पर बताऍंगे
4
कभी माहौल में हमने, ये खामोशी नहीं देखी
न जाने कौन से तूफान, अब इस बार आऍंगे
5
दिलों की बात कोई आदमी कहना नहीं चाहता
सभी के साथ अब हम भी, पहेली ही बुझाऍंगे
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451