घर :
घर :
अच्छा है या बुरा है
जैसा भी है
मगर
ये घर मेरा है
इस घर का हर सवेरा
सिर्फ और सिर्फ
मेरा है
मैं
दिन रात
इसकी दीवारों से बातें करता हूँ
मेरे हर दर्द को
ये पहचानती हैं
मैं
कौन हूँ
ये अच्छी तरह जानती हैं
धूप
हर रोज
इन दीवारों को धो देती है
दीवारों पर टंगे अतीतों पर
रो देती है
कल भी कहते थे
ये आज भी कहते हैं
ये घर उनका का है
दीवारों पर उनकी यादों का डेरा है
क्या हुआ
जो मैं भी कल अतीत हो जाऊँगा
फिर भी
इन दीवारों का हमजोली कहलाऊंगा
मैं इन्हें छोड़ कर
भला कैसे जाऊंगा
मैं आज भी कहता हूँ
मैं कल कहूंगा
वर्तमान के गर्भ में
काल से लिपटा कल का डेरा है
और ये कल
न तेरा है न मेरा है
मगर सच तो ये है दोस्तो
जैसा भी है
ये हसीं घर
मेरा है
सुशील सरना