घर
केवल चार दीवारों के भीतर बनाए
गए कमरों का नाम नहीं है घर।
कोने कोने में रहती है जहाँ जिन्दगी
पग पग पर मिलती है जहाँ खुशी।
हर पल खिलखिलाती है जहाँ हंसी
चारों तरफ बिखरी है जहाँ मुस्कान।
पल पल बरसता जहाँ अपनापन
वही घर होता है नहीं होता है मकान।
यही है घर की असली परिभाषा
यही है घर की असली पहचान ।
ईंट पत्थर की चारदीवारी में
जब पड़ जाती है अपने पन की जान।
तब कहीं जा कर एक प्यारे से घर में
बदल पाता है कोई मकान।
—रंजना माथुर दिनांक 08/10/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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