*घर-घर में अब चाय है, दिनभर दिखती आम (कुंडलिया)*
घर-घर में अब चाय है, दिनभर दिखती आम (कुंडलिया)
घर-घर में अब चाय है, दिनभर दिखती आम
दफ्तर में इसके बिना, चला न कोई काम
चला न कोई काम, चाय पर चर्चा चलती
बिना चाय के भेंट, अधूरी सबको खलती
कहते रवि कविराय, सभी इस के चक्कर में
मुखड़े की मुस्कान, सुबह इससे घर-घर में
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा रामपुर उत्तर प्रदेश
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