घनाक्षरी
विधा:- घनाक्षरी
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दिन दुपहरिया में, सांझी के पहरिया में,
आठो घड़ी खेतवे में, पलेला किसनवा।
रिमझिम बूनी पड़े, कान्हे प कुदारी धरे,
खेतवा की ओर देखऽ, चलेला किसनवा।
दिन रात जरे मरे, क़िस्मत से खूबे लड़े,
माथे प पसिना रोज, मलेला किसनवा।
तबो ना गरीबी पीछा, छोडले के नाम लेले,
भूखलऽ रहलऽ तोर, खलेला किसनवा।
माई बाप भाई बंधू, जनमे के साथी सभे,
करमे के साथी नाहीं, केहू बा जहान में।
मेहनत मजदूरी, दिन भर जेहि करी,
सांझी बेरा दाल रोटी, खाई उहे शान में,
केहू के न बात कबो, करीं ना जे एने ओने,
चुगुलाई केहू के ना, डाली जेहि कान में,
दिन रात यश बढ़ी, मान सममान मिली,
आदमी कहाई उहे, नीमन इंसान में।
रहिया निहारऽ तानी, तहके पुकारऽ तानी,
मानि लऽ कहल अब, आजा परदेसिया।
घरवा दुवार काटे, कोयली के बोली डाँटे,
बूझऽ परसानी आजा, राजा परदेसिया।
कवनी जे बतिया के, हमरा के देत बारऽ,
बोलऽ तुहूँ आज इहो, साजा परदेसिया।
ओठवा के लाली बोले, कनवा के बाली बोले,
सेजिया उदास क के, नाजा परदेसिया।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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