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21 Jan 2024 · 3 min read

घट -घट में बसे राम

“भये प्रकट कृपाला, दीनदयाला” की स्तुति के विशेष कालखण्ड का स्मरण अयोध्या के इतिहास पर नज़र रखने वालों को होगा । इसे स्मरण करना सामयिक होगा और उनके प्रति आभार भी जिन्होंने इस स्तुति को साकार होने के लिए ज़मीन तैयार की । हाँ, यह स्तुति /भजन -कीर्तन 22-23 दिसम्बर , 1949 की सर्द रात में वहीं की जा रही थी, जहाँ आज श्रीरामलला के बालरूप विग्रह की प्राण – प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक पल ने चतुर्दिक वातावरण को राममय किया है । यह स्थान सन् 1528 से इस पल की प्रतीक्षा में था । गहन पीड़ा से उपजी आस्था के चरम में राम हैं । विश्व में शायद ही इस प्रकार की आस्था के चरम का पूर्व में कोई दृष्टांत होगा ।
बहुतेरे दिसम्बर 1949 की उस सर्द रात को याद कर रहे होंगे , जिसे एक चमत्कार की दृष्टि से देखा जाता है । उस सर्द रात को सरयू नदी का जल, रामलला की मूर्तियाँ और ताँबे का कलश लालटेन की रोशनी में गर्भगृह में पहुँच चुका था ।विवाद होना ही था , जाँच होनी ही थी । जाँच के दौरान वहाँ सुरक्षा सेवा में तैनात हवलदार अबुल बरकत ने तत्कालीन ज़िला मजिस्ट्रेट को जो चमत्कार से भरा बयान दिया था वह संघर्ष के इस अंतिम पड़ाव के वक़्त स्मरणयोग्य है । अबुल बरकत ने बयान दिया था कि 22 व 23 दिसम्बर, 1949 के बीच की रात उसने लगभग दो बजे इमारत के अंदर एक खुदाई (ईश्वरीय ) रोशनी कौंधते देखी, जिसका रंग सुनहरा था । उसमें उसने एक चार -पाँच वर्ष के देवतुल्य बालक को देखा । यह दृश्य देखकर वह सकते में आ गया । जब उसकी चेतना लौटी, तब उसने देखा कि मुख्य द्वार का ताला टूटा पड़ा है और असंख्य हिंदुओं की भीड़ भवन में प्रवेश कर सिंहासन पर प्रतिष्ठित मूर्ति की आरती तथा स्तुति कर रही है । इसी प्रकार की घटना का उल्लेख पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने अपनी पुस्तक “अयोध्या 6 दिसंबर 1992” में भी की है । इस पुस्तक का प्रकाशन उनके निधन के बाद हुआ था । किसी चमत्कार का होना अवैज्ञानिक कहा जा सकता है , पर जो घटित हो रहा है वह किसी चमत्कार से कम नहीं ।
सर्वत्र राम लहर और अयोध्या का दृश्य सरयू को उफनाने के लिये पर्याप्त है । सरयू चमत्कृत है । वर्तमान पीढ़ी इस लहर की साक्षी बनी है । श्री राम के बालस्वरूप की प्रतिमा सभी जाति, धर्म , संप्रदाय के लोगों को लुभा रही है । तुलसीदास होते तो रामचरितमानस में वर्णित राम के बालस्वरूप को और आगे बढ़ाते ।
यह राम हैं कौन ? प्रश्न स्वाभाविक है । उत्तर अनेक हैं ।सबके अपने राम हैं । राम ईश्वर भी हैं और अवतार भी । यह इतिहास के पन्नों में भी समाए हैं और असंख्य लोगों की कल्पनाओं में भी । वह निर्गुण निराकार हैं और सगुण साकार भी । राम एक राजा भी हैं और ऋषि भी । वह तो कण-कण में राम समाए हैं । सब खोज में लगे हैं । आप सचमुच खोजेंगे तो पायेंगे अपने राम को अपने ही पास, अपने ही अन्दर । बहरहाल, राममय हुए अयोध्या को , देश को और संसार को भी इस ऐतिहासिक कालखण्ड के साक्षी बनने के लिए हार्दिक बधाइयाँ । राम की मर्यादा सबके अंतःकरण में प्रवाहित हो, बिना राग द्वेष के और राम राज्य का सपना इस महान देश में साकार हो, ऐसी कामना है ।

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