गौरैया
गोरैया
गोरैया का इन्तजार है ।
घोंसले में क्यों अन्धकार है।।
कब चहकेगा आंगन मेरा,
चिङिया बता क्यूं लाचार है।।
शाम की कब रौनक आएगी,
दूर गई क्यों इनकी डार है।।
इसका लगाव था इन्सां से ,
भौतिक युग की हुई मार है।।
एक -एक करके कितने पंछी,
मार गए लम्बी उङार है ।।
ये सिल्ला’ के सपनों में फुदके,
जिसको इससे बहुत प्यार है।।
-विनोद सिल्ला